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मगध साम्राज्य की trick haryak vansh history in hindi shishunaga vansh history in hindi नन्द वंशtrick

Published 21 Jul 2020

shishunaga vansh history in hindi बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना ५४४ ई. पू. में की। इसके साथ ही राजनीतिक शक्‍ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक/राजा माना जाता है। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनायी। इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार (५४४ ई. पू. से ४९२ ई. पू.)- बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया। सबसे पहले उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेतक की पुत्री चेलना के साथ विवाह किया। दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ विवाह किया। इसके बाद भद्र देश की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया। महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की ५०० रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्‍तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्‍कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्‍त किया था। बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र और संरक्षक था। विनयपिटक के अनुसार बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया, लेकिन जैन और ब्राह्मण धर्म के प्रति उसकी सहिष्णुता थी। बिम्बिसार ने करीब ५२ वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका ४९२ ई. पू. में निधन हो गया। बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र “दर्शक" को उत्तराधिकारी घोषित किया था। भारतीय इतिहास में बिम्बिसार प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी। haryak vansh history in hindi nand vansh history in hindi magadh rajya ka utkarsh magadh samrajya gk tricks magadh samrajya trick haryak vansh history शिशुनाग ४१२ई. पू.गद्दी पर बेठ। महावंश के अनुसार वह लिच्छवि राजा के वेश्या पत्‍नी से उत्पन्‍न पुत्र था। पुराणों के अनुसार वह क्षत्रिय था। इसने सर्वप्रथम मगध के प्रबल प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति को मिलाया। मगध की सीमा पश्‍चिम मालवा तक फैल गई और वत्स को मगध में मिला दिया। वत्स और अवन्ति के मगध में विलय से, पाटलिपुत्र को पश्‍चिमी देशों से, व्यापारिक मार्ग के लिए रास्ता खुल गया। शिशुनाग ने मगध से बंगाल की सीमा से मालवा तक विशाल भू-भाग पर अधिकार कर लिया। शिशुनाग एक शक्‍तिशाली शासक था जिसने गिरिव्रज के अलावा वैशाली नगर को भी अपनी राजधानी बनाया। ३९४ ई. पू. में इसकी मृत्यु हो गई। कालाशोक- यह शिशुनाग का पुत्र था जो शिशुनाग के ३९४ ई. पू. मृत्यु के बाद मगध का शासक बना। महावंश में इसे कालाशोक तथा पुराणों में काकवर्ण कहा गया है। कालाशोक ने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानान्तरित कर दिया था। इसने २८ वर्षों तक शासन किया। कालाशोक के शासनकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन हुआ। बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण को राजधानी पाटलिपुत्र में घूमते समय महापद्यनन्द नामक व्यक्‍ति ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी। ३६६ ई. पू. कालाशोक की मृत्यु हो गई। महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने मगध पर २२ वर्षों तक शासन किया। शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नन्दिवर्धन था। ३४४ ई. पू. में शिशुनाग वंश का अन्त हो गया और नन्द ३४४ ई. पू. में महापद्यनन्द नामक व्यक्‍ति ने नन्द वंश की स्थापना की। पुराणों में इसे महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है। यह नाई जाति का था। उसे महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द, चंद्रनंद। इसके शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकन्दर द्वारा किया गया। सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली। धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जिसे असीम शक्‍ति और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्‍वास को नहीं जीत सका। उसने एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था। चाणक्य ने अपनी कूटनीति से धनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया। महापद्मनन्द पहला शासक था जो गंगा घाटी की सीमाओं का अतिक्रमण कर विन्ध्य पर्वत के दक्षिण तक विजय पताका लहराई। नन्द वंश के समय मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया। व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के मित्र थे। वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए। शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे। /watch/AifHKTiyrl9yH /watch/YJJ-_bJ8NKS8- /watch/s3sJHbNUjbpUJ /watch/k8TbrUD5End5b /watch/Uj5qWsoOQy5Oq /watch/cHon1mzx1lkxn /watch/gszOCLAPInYPO /watch/oXW1vLHgoYyg1

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